
पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: जिले में 5 सीटों पर करारी हार के बाद भाजपा में भीतरघात को लेकर जंग शुरू हो गई है। भीतरघात के सबसे बड़े शिकार कैबिनेट मंत्री रहते चुनाव लड़े स्वामी यतीश्वरानंद हुए हैं। क्षेत्र में ऐसी चर्चाएं जोरों पर हैं कि स्वामी को हराने के लिए भाजपा के एक बड़े नेता ने पूरी बिसात बिछाई थी। बसपा प्रत्याशी दर्शन लाल शर्मा का टिकट बदलवाकर यूनुस अंसारी को मैदान में उतारने के पीछे भी इसी बड़े नेता की अहम भूमिका बताई जा रही है। यह भी सामने आया है कि भाजपा का एक बड़ा तबका स्वामी को हराने में लग गया था। यही नहीं छात्र संगठन एबीवीपी, बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारी और सदस्य भी स्वामी के बढ़ते कद को हजम नहीं कर रहे थे, इसलिए सभी ने विरोध में प्रचार किया। जिसका नतीजा निकला कि स्वामी कांग्रेस प्रत्याशी से 4472 वोटों से हार गए।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार में नंबर दो की हैसियत से उभरे कैबिनेट मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद का कद बहुत बढ़ गया था। भाजपा के नेता उनकी बढ़ती लोकप्रियता और कद से परेशान हो गए थे, उन्हें लग रहा था कि राजनीति में अब उनकी हैसियत स्वामी के सामने कुछ नहीं रहेगी। क्योंकि कार्यकर्ता स्वामी यतीश्वरानंद के साथ खड़े हो गए थे। भाजपा के एक धड़े ने स्वामी यतीश्वरानंद को घेरने की तैयारी चुनाव होने के चार महीने पहले ही शुरू कर दी थी, लेकिन स्वामी विरोधियों के मंसूबे नहीं जान सके और प्रदेश व जनता हित में दिन रात काम करते रहे।किसान, मजदूर हो किसी भी धर्म का व्यक्ति स्वामी यतीश्वरानंद का अनुयायी हो गया था। अपना कद घटते देख भाजपा के शीर्ष नेता ने स्वामी यतीश्वरानंद को हराने के लिए रणनीति बनाते हुए भाजपा नेता दर्शन लाल शर्मा को बसपा प्रत्याशी बनवा दिया, लेकिन जैसे ही चुनावी समय नजदीक आने लगा तो स्वामी के विरोधी नेताओं को लगने लगा कि दर्शन लाल शर्मा उनके मंसूबे को कामयाब नहीं कर सकेगा।
तो उन्होंने ऐन वक्त पर मुस्लिम समाज के युनूस अंसारी को बसपा से प्रत्याशी बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर दिए। इसी के साथ ही चौहान गुट को सक्रिय करते हुए कह दिया गया कि यदि स्वामी यतीश्वरानंद तीसरी बार विधायक बन जाता है तो उनका वजूद समाप्त हो जाएगा और चौहान राजपूत समाज को कभी विधायक बनने का मौका नहीं मिलेगा। इसी को देखते हुए एक बड़ा धड़ स्वामी यतीश्वरानंद के खिलाफ मैदान में उतर गया, जबकि ये ही लोग स्वामी यतीश्वरानंद के साथ प्रचार प्रसार में भी जाते और रात को बनने वाली रणनीति में शामिल होते।
इसके अलावा लक्सर सीट पर तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे संजय गुप्ता भी भीतरघात का शिकार बने हैं। मतदान के दिन ही संजय गुप्ता ने मोर्चा खोल दिया था और आलाकमान से कार्रवाई की मांग भी कर डाली थी।
ज्वालापुर सीट पर भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठौर को भी भीतरघात का सामना करना पड़ा है।
वहीं, पिरान कलियर सीट पर मुनीष सैनी को हराने के लिए भी भाजपा के कुछ नेताओं ने अंदरूनी तौर पर काम किया है।
खाने वाली बात यह है कि जीत की हैट्रिक लगाने वाले कांग्रेस प्रत्याशी फुरकान अहमद को 10 हजार वोट उस वर्ग से मिले हैं जो भाजपा का कैडर वोट माना जाता है। इस खेल में भाजपा के लोगों की बड़ी भूमिका है। भीतरघात को अभी अंदरूनी तौर पर ही आरोप-प्रत्यारोप सामने आ रहे हैं। सरकार बनने के बाद घमासान मचना तय माना जा रहा है। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि क्या भाजपा हाईकमान पार्टी लाइन से हटकर अपने ही प्रत्याशी को हराने वाले भीतरघातियों व गद्दारों पर क्या कार्रवाई करता है।