जिला पंचायत उपाध्यक्ष की अवैध कॉलोनियों में आखिर किसने बनाई सड़कें, कैसे बिछी पानी की लाइनें..
कई विभागों के अधिकारी बहा रहे "विकास की उल्टी गंगा, अवैध कॉलोनियों में सरकारी मद से कराए गए विकास कार्यों पर उठ रहे सवाल..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: सरकार लाख दावा करे कि “सबका साथ-सबका विकास” किया जा रहा है, लेकिन हरिद्वार जिले में कई विभाग सरकारी दावों की यह तस्वीर पलटने में लगे हैं। कुछ अधिकारी या तो बहुत नादान है जो सरकार की मंशा को समझ नहीं पा रहे हैं, या फिर जरूरत से ज्यादा सयाने हैं कि चंद नेताओं की जी हुजूरी के चलते उनकी अवैध कॉलोनी में भी “विकास की उल्टी गंगा” बहाने में लगे हुए हैं।

आखिर ऐसी क्या वजह है कि जिला पंचायत उपाध्यक्ष अमित कुमार की अवैध कॉलोनी में ही सारा विकास उमड़-घुमड़ कर आ गया है। अधिकारियों ने यहां न सिर्फ सरकारी मद से सड़कों का जाल बिछा दिया, बल्कि सरकारी पेयजल लाइन और बिजली कनेक्शन के लिए ट्रांसफार्मर तक की भरपूर सुविधा उपलब्ध कराई हुई है।

जबकि साफ नियम है कि अवैध कॉलोनी में सरकारी पैसा कतई खर्च नहीं किया जाएगा। इसे सत्ता का दबाव कहें या फिर कमीशन का खेल, जिला पंचायत से लेकर कई अन्य सरकारी विभागों ने अपनी विकास योजनाओं का फोकस जिला पंचायत उपाध्यक्ष के अवैध कॉलोनी की तरफ मोड़ दिया है।

सूत्र बताते हैं कि पिछले 1 साल के भीतर इन अवैध कॉलोनी में बड़े पैमाने पर विकास कार्य करते हुए नियमों को ठेंगा दिखाया गया है। जहां तक जिला पंचायत उपाध्यक्ष अमित कुमार के राजनीतिक रसूख की बात करें तो चुनाव जीतने तक उनकी गिनती धामी सरकार में कद्दावर मंत्री रहे स्वामी यतीश्वरानंद के करीबी के रूप में होती आई है।

लेकिन पिछले कुछ समय से अमित कुमार के स्वामी विरोधियों से गलबहियां करने की खबरें भी लगातार बाहर आ रही हैं। ऐसे में साफ है कि जिला पंचायत उपाध्यक्ष किसी भी सूरत अपना एक सूत्रीय कार्यक्रम जारी रखने में लगे हैं। ऐसे में उन अधिकारियों के लिए मुश्किल जरूर खड़ी हो जाती है, जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन को धरातल पर उतारने में लगे हैं।

चंद पुछल्ले अधिकारियों के चलते सरकारी पैसे की बंदर बांट के अलावा सरकार को लेकर आम जनता में बहुत खराब मैसेज जा रहा है। देखने वाली बात यह है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली सरकार या फिर आला अधिकारी अवैध कॉलोनियों में हुए सरकारी धन से हुए विकास कार्यों की जांच करने की हिम्मत जुटा पाते हैं, या नहीं।