अपराधहरिद्वार

जिसकी लाठी, उसकी भैंस: पीड़ित की शिकायत तीन हफ्तों से पेंडिंग, आरोपी पक्ष ने चुटकी बजाकर दर्ज कर दिया मुकदमा..

होटल मालिक और लीजधारक का विवाद, नियम-उसूल दरकिनार, आखिर मलिक की तरफ झुका पुलिस का पलड़ा, कई चर्चाएं..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक, पीड़ित को न्याय दिलाने के लाख दावे करें, लेकिन पुलिस तो वही करती है, जो गणित सीधे तौर पर उसको समझ में आता है।

काल्पनिक फोटो

पीड़ित समय पर अपनी फरियाद लेकर थाने भी पहुंच जाए, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि उसकी शिकायत पर सुनवाई होगी।

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अगर आरोपी पक्ष पुलिस के मन को भा गया तो बाद में आने के बावजूद आरोपी पक्ष की सुनवाई पहले होगी। हरिद्वार के बहादराबाद थाना क्षेत्र में सामने आए एक मामले से तो कम से कम उत्तराखंड पुलिस के बारे में यही धारणा बनाई जा सकती है। एक पुरानी कहावत भी है कि जिसकी लाठी, उसकी भैंस। 13 सितारा होटल मालिक और लीजधारक के बीच चल रहे विवाद में पुलिस का पलड़ा आखिरकार मलिक की तरफ ही झुका। यह अलग बात है कि लीज धारक ने दो हफ्ते पहले अपने लिखित शिकायत थाने में दे दी थी।

फाइल फोटो

लेकिन गनीमत है कि पुलिस आरोपी पक्ष को थाने भी बुला सकी हो, दूसरी तरफ आरोपी पक्ष ने तीन हफ्ते बाद आकर भी चुटकी बजाकर मुकदमा दर्ज करा दी।  हैरानी की बात यह है कि पूरा विवाद आला पुलिस अधिकारियों की संज्ञान में था।

फाइल फोटो

दोनों ही पक्षों को जिले के पुलिस कप्तान के सामने पेश होने के लिए भी बुलाया गया था। लेकिन इससे पहले ही खेल हो गया और कप्तान के सामने पेश होने से पहले आरोपी पक्ष को पीड़ित और पीड़ित पक्ष को आरोपी बना दिया गया।

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यह उलटफेर किस राजनीतिक शास्त्र, अर्थशास्त्र या अन्य किसी शास्त्र के तहत किया गया है, यह तो पुलिस ही जाने, लेकिन इस कारनामे को लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं और चर्चाएं भी बनी हुई हैं।
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“सुप्रीम कोर्ट के आदेश ठेंगे पर…..

फाइल फोटो

पुलिस जब अपनी पर आ जाए तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी ठेंगा दिखाने से नहीं डरती। अलग-अलग मामलों की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय कई बार यह स्पष्ट कर चुका है कि थाने आने वाली शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर की जाएगी।

फाइल फोटो

लेकिन इस मामले में पीड़ित पक्ष की तहरीर 3 सप्ताह तक फाइलों में दबी रही और आखिरकार दबी ही रह गई। 3 सप्ताह में कई बार पीड़ित से सुबूत मांगे गए। जबकि जांच का काम एफआईआर के बाद का है। फिर यदि सबूत पहले जरूरी है तो यही नियम आरोपी पक्ष के साथ क्यों नहीं अपनाया गया।

फाइल फोटो

क्या एक जैसे आरोपों में दो पक्षों के लिए अलग-अलग नियम कानून होते हैं। कुल मिलाकर वही हुआ, जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं, जिसकी लाठी उसकी भैंस। पीड़ित पक्ष सुबूत ही जुटाता रह गया और आरोपी पक्ष से सुबूत मांगे बगैर अनाप-शनाप धाराओं में फ़र्ज़ी मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

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इससे न सिर्फ बहादराबाद पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में है, बल्कि अधिकारियों के निर्देशन पर भी सवाल या निशान लग रहा है।

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