सूफियाना रस्मों के साथ साबिर पाक का सालाना उर्स संपन्न, अकीदतमंदों ने नम आंखों से ली विदाई..
कथित सूफियों ने खुद को प्रमोट करने के लिए ईजाद किए नए तरीके, बने चर्चाओं का विषय..
पंच👊नाम
प्रवेज़ आलम, पिरान कलियर: आस्था की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का 756 वा सालाना उर्स सूफियाना रस्मों के साथ अदा किया गया। उर्स में छोटी रोशनी, बड़ी रोशनी, कुल शरीफ और ग़ुस्ल शरीफ की रस्मों में अकीदतमंदों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, बुधवार की देर रात महफ़िल ए समा में रुखसती कलाम और दुआएं खैर के साथ उर्स का संपन्न हुआ, जिसके बाद नम आंखों के साथ अकीदतमंद अपनी-अपनी मंजिल की ओर रवाना हुआ शुरू हो गए।मेहंदी डोरी की रस्म के साथ शुरू हुए साबिर पाक के सालाना उर्स का बुधवार को ग़ुस्ल शरीफ और देर रात महफ़िल ए समा के बाद समापन हो गया। उर्स में देश-विदेश से आए जायरीनों ने दरबार ए साबिर में खिराज ए अक़ीदत पेश कर मन्नते मुरादे मांगी, उर्स में विभिन्न सूफियाना रस्मों को अदा किया गया जिसमें अकीदत भारी तादाद में शामिल हुए। उर्स की अंतिम रस्म ग़ुस्ल शरीफ के बाद देर रात दरगाह परिसर में साबिर पाक के दादा पीर बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रह. का कुल हुआ, इसके बाद महफ़िल ए समा का आयोजन हुआ, इसमे दस्तारबंद कव्वाल निज़ाम साबरी ने रुख़्सती कलाम पढा, ” साबिर जी तोरा मेला बिछुडो जाए… नज़ारे मुस्कुराकर रो रहे, तेरे मेहमान रुखसत हो रहे है। जिसे सुनकर अकीदतमंद अपने आंसुओं को रोक नही पाए, बाद महफिले समा के दुआएं खैर कराई गई जिसके बाद सालाना उर्स विधिवत रूप से संपन्न हो गया।
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इस बार सिर्फ उर्स हुआ/बारिश ने खोया मेला……
पिरान कलियर में होने वाले उर्स/मेले में दूर दराज से जायरीन पहुँचते है। उर्स में दरगाह शरीफ के अंदर सूफियाना रस्मों को अदा किया जाता है, जबकि मेले में झूला सर्कस, खेल तमाशे, और विभिन्न दुकानें लगाई जाती है। इस बार उर्स/मेला शुरू होने से पूर्व लगातार हुई बारिश ने मेले का निजाम बिगाड़ दिया, जिस कारण झूला/सर्कस खेल तलाशे आदि नही लग पाए, वही उर्स की तमाम रस्मो में अकीदतमंदों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। यही वजह रही कि सालाना उर्स/मेला कुछ दिन में ही सिमट गया।
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अक़ीदत या सियासत, नई परम्पराओं की शुरुआत…..सदियों से होने वाले साबिर पाक के उर्स में अब कथित सूफी सियासी का तड़का लगाकर अपनी रोटियां सेंकने से भी गुरेज नही कर रहे है। जिन रस्मों को सदियों से अदा किया जा रहा है अब उनके प्रचार प्रसार के साथ खुद को प्रमोट करने का नया फंडा चलाया गया है, जिस मेहंदी डोरी की रस्म के साथ उर्स का आगाज होता है उसे भी अपने नाम से प्रचलित कर खुद को प्रमोट किया जाना चर्चाओं का विषय रहा।इसी के साथ दरगाह परिसर में होने वाली बाबा फरीद के नाम से महफ़िल को लेकर बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई, इतना ही नही प्रेसवार्ता में राजनीतिक लोगो को मंचासीन कराया गया, जो कई सवाल खड़े करता है। आखिर सदियों से होने वाली परम्पराओं में अब खुद को प्रमोट करने और उसका राजनीतिकरण करने की क्या आवश्यकता आन पड़ी, बहरहाल उर्स में ये तमाम मामले भी चर्चाओं का विषय रहे।