हज़रत अली की शहादत: न्याय और आध्यात्मिकता के प्रतीक को याद करने का दिन..

मुनव्वर अली साबरी
पिरान कलियर: 21 रमजान 40 हिजरी (28 जनवरी 661 ईस्वी): इस्लामी इतिहास का वह दिन, जब इंसाफ और हक़ के सबसे बड़े पैरोकार, बहादुरी और ज्ञान के प्रतीक, इस्लाम के चौथे खलीफा हज़रत अली इब्न अबी तालिब की शहादत हुई। यह वह दिन है, जब दुनिया ने एक ऐसे महान व्यक्तित्व को खो दिया, जिसने अपने अमल और अख़लाक से इंसानियत को रोशन किया।
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एक दर्दनाक घटना जिसने इस्लाम के इतिहास को हिला दिया…..कूफा की मस्जिद में 19 रमजान को जब हज़रत अली फजर की नमाज़ के लिए खड़े हुए, तब खारिजी विचारधारा से प्रभावित अब्दुर रहमान इब्न मुल्जिम ने जहरीली तलवार से उन पर हमला किया। इस घातक प्रहार से गंभीर रूप से घायल होने के दो दिन बाद, 21 रमजान को हज़रत अली इस दुनिया से रुख़सत हो गए। उनकी शहादत केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं थी, बल्कि एक युग का अंत थी—एक ऐसा युग जो न्याय, करुणा और सच्चाई पर आधारित था।
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हज़रत अली: इंसाफ और इल्म का मरकज़…..हज़रत अली, जिन्हें मौला अली के नाम से भी जाना जाता है, पैगंबर मुहम्मद के चचेरे भाई और दामाद थे। वे इस्लाम के सबसे बहादुर योद्धाओं और न्यायप्रिय शासकों में से एक थे। उनकी सोच समानता, करुणा और हक़ पर आधारित थी। उन्होंने अपने शासनकाल में गरीबों और बेसहारा लोगों की हमेशा मदद की और अन्याय के खिलाफ हमेशा खड़े रहे।
उनकी एक मशहूर कहावत आज भी इंसानियत का पैगाम देती है: “इंसान या तो तेरा भाई है धर्म में, या बराबर है इंसानियत में।” यह कथन उनके विशाल हृदय और उनकी न्यायप्रियता को दर्शाता है।
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ज्ञान और आध्यात्मिकता का उजाला…..हज़रत अली केवल एक शासक ही नहीं, बल्कि इल्म और हिकमत के भंडार भी थे। उनकी हिकमत भरी बातें और उनके द्वारा कही गई हदीसें आज भी दुनिया भर में लोगों के लिए रहनुमाई का काम करती हैं। उन्होंने सूफी मत की नींव रखी, जो आज भी आध्यात्मिकता और सच्चाई का संदेश देता है। सिफ्फीन की जंग में उनकी रणनीति और धैर्य ने उन्हें एक महान सेनापति साबित किया, जबकि उनकी आध्यात्मिकता ने उन्हें वली और हादी बना दिया।
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मौला अली की याद में आयोजित कार्यक्रम…..हर साल, 21 रमजान को दुनियाभर में हज़रत अली की शहादत को याद किया जाता है। उनकी याद में प्रार्थनाएं, इफ्तार और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। पिरान कलियर दरगाह सहित देशभर में कई स्थानों पर रोज़ा इफ्तार और मजलिसों का आयोजन किया गया, जहाँ उनके जीवन से प्रेरणा लेकर लोगों ने इंसाफ, भाईचारे और इंसानियत के रास्ते पर चलने का संकल्प लिया।
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एक अमर विचारधारा, जो आज भी ज़िंदा है…..हज़रत अली की शहादत केवल इतिहास की एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक विचारधारा है—एक ऐसी विचारधारा जो इंसानियत को न्याय, सत्य और करुणा की राह पर चलने की प्रेरणा देती है। उनकी शिक्षा और उनका जीवन हमें याद दिलाता है कि दुनिया में अमन, मोहब्बत और इंसाफ ही सबसे बड़ा धर्म है।
आज, जब हम हज़रत अली की याद में सिर झुकाते हैं, तो हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि उनके दिखाए रास्ते पर चलकर समाज में न्याय, करुणा और भाईचारे को कायम रखें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।