हरिद्वार

हरिद्वार के शमशान घाट पर चिताओं की राख से खेली गई होली, किन्नर नागा संन्यासी और अघोरी हुए शामिल..

दूर-दूर से पहुंचे तंत्र-मंत्र की साधना करने वाले अघोरी, देखने वालों का लगा जमावड़ा, देखें वीडियो..

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: सनातन परंपराओं में कई अनूठी और रहस्यमयी साधनाएँ हैं, जो गहरे आध्यात्मिक और दार्शनिक संदेश देती हैं। इन्हीं में से एक है श्मशान में होली।

इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, माँ भवानी शंकर नंद गिरी किन्नर महाराज, जो कि प्रथम किन्नर नागा सन्यासी हैं, ने हरिद्वार के खड़खड़ी श्मशान घाट में चिता की राख से होली खेली। इस अवसर पर देशभर से साधक और अनुयायी उपस्थित रहे।
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जीवन-मृत्यु के भेद को मिटाने का प्रतीक है “श्मशान की होली….माँ भवानी शंकर नंद गिरी ने बताया कि श्मशान की होली केवल एक अनुष्ठान मात्र नहीं, बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक संदेश भी है। यह प्रथा जीवन और मृत्यु के चक्र को समझने और नश्वरता को स्वीकार करने की दिशा में उठाया गया कदम है। उन्होंने कहा कि श्मशान वह स्थान है, जहाँ जीवन की अंतिम सच्चाई सामने आती है—हर जीव को एक दिन मिट्टी में मिल जाना है। इसी सत्य को स्वीकार कर साधक मोह-माया से मुक्त होने की साधना करते हैं।उन्होंने बताया कि अघोर पंथ और इसके अनुयायी इस साधना को अत्यंत गूढ़ मानते हैं। यह जीवन और मृत्यु के भेद से परे जाने का मार्ग है। श्मशान साधना केवल मृत्यु का भय समाप्त करने के लिए नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ब्रह्म के साक्षात्कार के लिए की जाती है। यही कारण है कि अघोरी साधक सामान्य समाज से अलग रहते हैं और अपनी साधना में लीन रहते हैं।
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अघोर साधना और तांत्रिक परंपराएँ….माँ भवानी शंकर नंद गिरी ने बताया कि अघोरी साधना अत्यंत कठिन और रहस्यमयी होती है। यह प्राचीन योगिक और तांत्रिक पद्धतियों पर आधारित है, जिसमें साधक माया, मोह और सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर परम तत्व की प्राप्ति का प्रयास करता है। उन्होंने कहा कि श्मशान मृत्यु और जीवन के बीच का एक पुल है, जहाँ साधक नश्वरता को स्वीकार कर मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।
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देशभर से पहुंचे साधक और अनुयायी….इस विशेष आयोजन में देशभर से तंत्र और योग साधक शामिल हुए। प्रमुख रूप से ग्वालियर से तंत्र साधक अनिल शंकर नंद गिरी, देहरादून से तंत्र एवं योग साधक अखिल शंकरनंद गिरी, दिल्ली से गुरु माँ मीनाक्षी भैरवी, आजमगढ़ से रुद्राणी शंकर नंद गिरी, प्राचल शंकर नंद गिरी, हरिद्वार से गद्दी नशीन गुंजा, दलीप कुमार काले, विनीत जोली, सूरज सहित कई अन्य अनुयायी इस अनूठी परंपरा के साक्षी बने।
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संदेश: नश्वरता को स्वीकार कर मोक्ष की ओर बढ़े मानवता….इस अनूठी होली के माध्यम से अघोरी साधकों ने जीवन की अनित्यता और आध्यात्मिक उत्थान का संदेश दिया। उनका मानना है कि जब तक मानव मृत्यु के भय से मुक्त नहीं होगा, तब तक वह वास्तविक आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त नहीं कर सकता। इसीलिए, यह साधना न केवल व्यक्तिगत आत्मविकास का माध्यम है, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण का संदेश भी देती है।

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