पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: इन दिनों पूरे देश में हरियाणा के मेवात जिले (नूंह) में हुई हिंसा की गूंज सुनाई पड़ रही है। तमाम लोग हिंसा के लिए राजनीतिक साजिश को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। जबकि काफी लोगों का मानना है कि यह घटना मेवात जिले में सांप्रदायिक असंतुलन की देन है।
घटना के पीछे कारण कुछ भी हो, लेकिन हिंसक घटनाएं देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है और सामाजिक व्यवस्था में बदनुमा दाग है। इस घटना को लेकर लोग सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं।
उत्तराखंड पुलिस के जाने-माने इंस्पेक्टर आरके सकलानी ने भी मेवात और नूंह जिले से जुड़ा अपना एक अनुभव सोशल मीडिया पर साझा किया है। वर्तमान में जिला पुलिस मुख्यालय हरिद्वार में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पेशकार के तौर पर तैनात इंस्पेक्टर आरके सकलानी किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
उनकी सोशल पुलिसिंग का हर वर्ग कायल है। अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी निभाने के अलावा वे लीक से हटकर देश के भावी नागरिक तैयार करने यानि युवाओं का मार्गदर्शन करने में हमेशा तत्पर रहते हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड के युवा वर्ग में इंस्पेक्टर सकलानी खासे लोकप्रिय हैं।
अपनी फेसबुक पोस्ट में इंस्पेक्टर आरके सकलानी ने साल 2011 में मेवात से एक मुलजिम को गिरफ्तार कर लाने के दौरान का खाका खींचा है। उन्होंने मेवात में उस समय की परिस्थितियों को अपने शब्दों में उकेरते हुए उत्तराखंड पुलिस की काबिलियत को भी बयान किया है। इस पोस्ट पर लोग अपनी प्रतिक्रिया देते हुए इंस्पेक्टर आरके सकलानी के जज़्बे और उत्तराखंड पुलिस के इकबाल को सैल्यूट कर रहे हैं। इस पोस्ट में इंस्पेक्टर आरके सकलानी ने यह भी बताया है कि पुलिस को अवधारणा बनाने के बजाय ख़ुद के आत्मविश्वास की ज़रूरत होती है। तभी वह विपरीत परिस्थितियों में अपना फर्ज अंजाम दे सकती है। मुश्किल हालात में इंस्पेक्टर आरके सकलानी मेवात से हत्या के मुलजिम को जितनी दबंगई से गिरफ्तार कर हरिद्वार लाए और सोशल पुलिसिंग को जिस तरीके से उन्होंने अपनी सेवा और कार्यशैली का हिस्सा बनाया है।आपका प्रिय समाचार पोर्टल “पंच👊नामा… उनकी बहादुरी और सेवा कार्य को सलाम करता है।
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“वर्ष 2011 की सच्ची कहानी, इंस्पेक्टर सकलानी ज़ुबानी…
” एक #संस्मरण
मेवात का नूह्न आजकल चर्चाओं में है। मैं 2011 में हरिद्वार में सिडकुल प्रभारी था। मेरे यहाँ एक ट्रक चालक की हत्या हुई थी जो उसी के क्लिनर ने की थी। आरोपी नुह्न का रहने वाला था लिहाज़ा मैं 3 सिपाही लेकर नूह्न थाने पहुँचा। जब मैंने आरोपी को पकड़ने के लिये वहाँ के SHO को फ़ोर्स देने के लिए कहा तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और कहा की उस गाव में घुसने के लिए कम से कम 500 पुलिस वाले चाहिए आप अपने यहाँ से अतिरिक्त फ़ोर्स मंगाइये तब मैं साथ में अपने थाने का फ़ोर्स दूँगा।
अब मैं भी कहाँ पीछे हटने वाला था वहाँ थाने में हमने उस गाव के एक उसी समुदाय के होम गार्ड की मदद से आरोपी के घर की लोकेशन और पहचान ले ली। उस होम गार्ड ने वास्तव में गाव और धर्म से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र धर्म को निभाया। मात्र 3 सिपाही साथ लेकर गाव में घुस गये। गाव की आबादी क़रीब 10 हज़ार रही होगी।
अंदर घुस कर वास्तव में अनजान जगह होने के कारण नयी दुनिया लग रही थी। हम होमगार्ड के बताये अनुसार उस घर में घुस गये। मजे की बात है की बेख़बर आरोपी अपने घर के आँगन में ही बैठा था उसकी नज़र हम पर पड़ते ही उसने भागने की कोशिश की पर हमने दबोच लिया। गाड़ी के ड्राइवर को हमने पहले ही गाड़ी बैक करने के लिए कह दिया था।
आरोपी को बिना किसी देरी के गाड़ी में ठूँसा तब तक आस पास के लोगो और उसके घर वालों ने हमे घेरने का प्रयास किया पर सफल नहीं हो पाये उसे लेकर जब हम नूह्न थाने पहुँचे और वहाँ के SHO को हमने सीना ठोककर बताया कि हम आरोपी को ख़ुद ही उठा ले आये है। SHO साहब की आँखें फटी की फटी रह गई उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था।
पुलिस चाहे मेवात में हो या उत्तराखंड में या कही भी जनसंख्या की तुलना में वह अपने क्षेत्र के आबादी का .01% होती होगी परंतु हमारी ट्रेनिंग और आत्मविश्वास हमे ये हिम्मत देती है की अपराधी को उसके बिल से खींच कर ले आयें। इस घटना से मुझे लगा कि पुलिस को अवधारणा बनाने के बजाय ख़ुद के आत्मविश्वास की ज़रूरत होती है ।
@R K saklani