मोबाइल बन गया जुए का अड्डा, जाल में फंसकर मेहनत की गाढ़ी कमाई गंवा रहे लोग..
दिनभर मजदूरी करने वाले मेहनतकश लोग सबसे ज्यादा हो रहे शिकार, परिवार हो रहे बर्बाद..
पंच👊नामा-ब्यूरो
राजस्थान: एक कारीगर ने मुझे कॉल किया, रात का वक़्त था। बोला “अब्बास भाई, मेरे फोन पे में 500 रु ट्रांसफर कर दो.. ठेकेदार आज आया नहीं। राशन के पैसे नहीं है। “मैंने ट्रांसफर कर दिये।
इस तरह से उसने 2-3 बार और पैसे लिए.. कोई ऐसी ही इमरजेंसी बताकर। कुल उधारी 4500 रुपये हो गई। काफी दिन गुजर गये, एकदिन ठेकेदार का हिसाब करवाने आया मुझसे, तो मैंने उसे कहा मैं जो 4500 रुपये मांगता हूं वो भी दे। बोला “अभी तो है नहीं, लेकिन मैं दे दूंगा आपको” .. इस तरह से वो पैसा आया नहीं।
मैंने उसके साथी मजदूर से पूछा, कि ये पूरा महीना काम पर जाता है। महीने में 35-40 हज़ार कमा लेता है। घर का राशन और गुटखे के अलावा इसका कोई खर्च नहीं है। तो इतना पैसा जाता कहाँ है? इसकी जेब में 500 रुपये नहीं मिलते?
साथी मजदूर ने बताया कि “इसपर ढाई लाख रुपये का कर्ज़ है.. जुआ खेलता था मोबाइल पर… उसमें फंसा.. अब भी खेलता होगा। शुरू में 10 हज़ार रुपये जीता था तब सबको बताया था। फिर हारता चला गया। बीवी के गहने बिक गए हैं जो शादी के समय मिले थे। घर में भी अनबन चलती है इनके। रोज़ पति पत्नी रात को लड़ते हैं। और जी क्या… सारे ही जुआ खेलते हैं।”ये है कहानी जुआ की.. मजदूर/मिस्त्री/मध्यम आय वर्ग इसमें सबसे ज़्यादा झुलसा हुआ है। एक कारीगर.. दिनभर कंस्ट्रक्शन साइट की धूल फांककर अपने घर कुछ नहीं ले पा रहा.. उल्टा जो कुछ था सब हार गया। जिसमें प्यार, मुहब्बत, चैन, सुकून सारा कुछ था। गुब्बेड़ी, चिड़ीमार, तीन पत्ती वाले तो हैं ही.. जो कि कहीं ना कहीं पुलिस की छूट और राजनीतिज्ञों की शय पर पल रहे हैं।
यदि पुलिस और स्थानीय नेतागण चाहें तो इनकी अवैध दुकानें एकदिन नहीं चल सकती। लेकिन अहसास की कमी है। किसी की ज़िदंगी बर्बाद हो जाने का एहसास। किसी के हंसते खलते परिवार में दुख झौंक देने का अहसास। किसी के मासूम बच्चों के चेहरों से हँसी और मुँह से निवाला छीन लेने का अहसास। इस अहसास की कमी है। कमी ही नहीं, बल्कि अकाल पड़ा हुआ है।
बहरहाल मोबाइल एप्प के ज़रिए जुआ चलाने वाले अनगिनत जुआ माफिया अलग से पैदा हो गए हैं। मैंने यहाँ तक सुना है जो थोड़े बहुत धाक रखने वाले जुआरी हैं उन्होंने अपने एप्लिकेशन बना रखे हैं। राजनीतिक पार्टियां गेमिंग कम्पनियों से अरबों रुपये का चन्दा डकार कर चुपचाप बैठ चुकी है। इस सबके बावजूद “साम्प्रदायिक वैमनष्यता” लोगों का पसंदीदा विषय है।लेखक :- अब्बास पठान (जोधपुर राजस्थान)