पंच👊नामा ब्यूरो
सुल्तान, हरिद्वार: पुलिस में एक “निचले वाले छोटे साहब” के सवालों की बौछार से और “छोटे दारोगाओं की दो-धारी तलवार” से बचना “मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है। इनकी जद में जो भी आए, दर्द भी झेले और कराह भी न पाए।दर्द और कराहने से “पंच👊नामा… के अंडर कवर एजेंट “लल्लन ठाकुर” का सुनाया गया एक किस्सा याद आया, एक छोटे दारोगा जी ने एक्सीडेंट में चोट लगने पर दर्द से कराह रही एक महिला के परिवार से “ज़ख्म पर मरहम” लगवाने का पूरा टेंडर ले लिया। महिला की चोट के हिसाब से परिवार को मरहम कितने किलो मिलेगा, ये भी छोटे दारोगा जी ने पहले ही तय कर दिया।इसके बाद टक्कर मारने वाले बाइक सवारों को ढूंढकर हायर सेंटर व आईसीयू का ऐसा तीर छोड़ा कि आरोपियों के परिवार वाले गिरते-पड़ते छोटे दारोगा जी के चरणों में आ गिरे। हाथ जोड़े, पैर पकड़े, माली हालत का रोना रोया, मगर छोटे दारोगा जी का पत्थर दिल कहां पिघलने वाला था।योजना बनाकर की गई दारोगा जी की मेहनत का नतीजा ये निकला कि आरोपियों ने पैर पटकते हुए 24 घन्टे के भीतर उनका टारगेट पूरा किया। फिर कौन सा हायर सेंटर, कैसा आईसीयू, मिशन चंगा और नहा ली गंगा। घायल महिला का वक्त खराब था या छोटे दारोगा जी के हुनर का कमाल था… आरोपी हलाल हुए तो कोई बात नहीं, बस उन्हें एक बात का मलाल था।एक बार घायल महिला या उसके परिवार से मिलवाया तो होता। आमने-सामने बैठाया होता, तो शायद दोनों परिवारों ने मरहम के लिए कर्ज न उठाया होता। हाय री फूटी किस्मत… पीड़ित और आरोपी पक्ष एक दूसरे की शक्ल ही न देख पाए।😢छोटे दारोगा जी तो सारी जिम्मेदारी अपने एक स्टार वाले कंधों पर झेल गए। खैर अंदर की बात ये है कि इस मामले में “छोटे दारोगा जी “ठीक-ठाक” खेल गए। कुल मिलाकर हरिद्वार जिला नीचे से ऊपर तक प्रतिभाओं के मामले में भी माला-माल है।