दरगाह की एक और रवायत बन्द, समय बताने वाला ऐतिहासिक घंटा पर्दे में कैद..
: कुछ दिन पहले रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था अष्टधातु का घंटा
पिरान कलियर:- उर्स स्पेशल-4
प्रवेज़ आलम:- रुड़की/पिरान कलियर!
बरसों से इबादतगुजारों और आसपास के देहातों के मेहनतकश किसानों के लिए सायरन का काम करने वाला घंटा भी बदलाव की भेंट चढ़ गया है। एक के बाद एक रवायत को खत्म करने पर तुले दरगाह प्रशासन ने दरगाह परिसर में लगे घंटे को बजाना बंद कर दिया है। अष्टधातु का बना ऐतिहासिक घंटा रहस्यमय परिस्थितियों में गायब होने के बाद उसकी जगह पीतल का घंटा लगाया गया है जिसपर अधिकांश दिनों पर्दा पड़ा रहता है। दरगाह प्रशासन का इस बारे में कहना है कि नये जमाने में लाउडस्पीकर से अजान की परम्परा शुरू होने के बाद घंटा बजाने का कोई औचित्य नहीं रहा।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि दरगाह परिसर में आजादी से पूर्व गूलर के पेड़ पर अष्टधातु का बना ऐतिहासिक घंटा था लेकिन उस घंटे के रहस्यमय परिस्थितियों में गायब होने के बाद पीतल का घंटा लगाया गया था जिसका इस्तेमाल कलियर में रहकर इबादते इलाही करने वाले सूफी इकराम और पड़ोस के मेहनतकश किसानों को जगाने का काम करता था। रमजान में सहरी व अफ्तार करने में इसी घंटे को बजाकर लोगों को सूचना दी जाती थी लेकिन वक्त के साथ खत्म होती रवायतों में इस घंटे को भी बंद कर दिया गया। अकीदतमंदों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि लाख तरक्की हो लेकिन बरसों से चली आ रही रवायतों पर रोक लगाना मुनासिब नहीं है। कई बार लोग घंटा बजाने की मांग कर चुके हैं लेकिन दरगाह प्रशासन के कानों पर जूं नहीं रेंगती।
गौरतलब है कि दरगाह प्रशासन ने मेले एवं सामान्य दिनों की तमाम व्यवस्थाएं ठेका प्रथा को सौंप दी है और ठेकेदारी प्रथा ने सदियों से चली आ रही रवायतों को लील लिया है। मेले में अकीदत का मरकज रहने वाली खानकाहों के वजूद को दरकिनार कर दिया गया है। गूलर पर लगा घंटा भी बदलाव की भेंट चढ़ गया है। स्थानीय नागरिक और दूर दराज के किसानों का कहना है कि भले ही अन्य संसाधनों का प्रचलन बढ़ गया हो लेकिन दरगाह साबिर साहब के परिसर में लगे घंटे की आवाज में जो कशिश होती थी वह अब गायब हो गयी है।
कलियर से लगातार लोप होती रवायतों से अकीदतमंदों में गहरी नाराजगी है लेकिन न शासन-प्रशासन अकीदतमंदों की भावनाओं को तवज्जो दे रहा है और न दरगाह प्रशासन।
दरगाह साबिर पाक के सज्जादानशीन शाह अली एजाज साबरी कुद्दुसी ने बताया कि खानकाही रवायतों को बंद करना दुर्भाग्यपूर्ण है, वो बताते है कि दरगाह परिसर में लगें घण्टे को बजाने के लिए बाकायदा एक कर्मी तैनात था, जो समयानुसार घण्टे को बजाता था, उन्होंने बताया पाकिस्तान में बाबा फरीद की दरगाह पर आज भी घण्टा बजाने की परंपरा है, ये खानकाही निजाम है, इसमे तब्दीली करना सरासर गलत है।