हरिद्वार नगर निगम जमीन घोटाला: जांच में चार अधिकारी सस्पेंड, लेकिन एफआईआर अब तक क्यों नहीं..?

पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: नगर निगम में सामने आए बहुचर्चित जमीन घोटाले में जहां प्रशासन ने जांच के बाद सहायक नगर आयुक्त समेत चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। वहीं अब तक एफआईआर दर्ज न होने को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। शहरवासियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक का कहना है कि जब प्रथम दृष्टया दोष सिद्ध हो गया है, तो फिर कानूनी कार्रवाई में देरी क्यों..?
क्या है मामला….?
सूत्रों के अनुसार, नगर निगम की कीमती जमीन को निजी व्यक्तियों को गलत तरीके से आवंटित करने, लीज़ रद्द होने के बावजूद कब्जा बनाए रखने और कागजातों में हेराफेरी जैसे गंभीर आरोप सामने आए थे। इस पर आयुक्त स्तर से जांच कराई गई, जिसमें आरोपों की पुष्टि होने के बाद चार अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया।सवालों के घेरे में निगम प्रशासन…..
हालांकि यह कार्रवाई सराहनीय मानी जा रही है, लेकिन अब शहर में एफआईआर दर्ज न होने पर सवाल उठने लगे हैं। नगर निगम प्रशासन ने जांच पूरी होने और रिपोर्ट भेजे जाने की पुष्टि तो कर दी है, लेकिन अब तक न तो किसी थाने में तहरीर दी गई है और न ही कोई मुकदमा पंजीकृत हुआ है।जानकार क्या कहते हैं….?
कानूनी जानकारों का मानना है कि जांच में सरकारी संपत्ति के दुरुपयोग और रिकॉर्ड में हेराफेरी की पुष्टि हो जाने के बाद धारा 409 (विश्वासभंग), 420 (धोखाधड़ी), 467/468 (जालसाजी) जैसी धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज होना आवश्यक है।जनता और विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया……
स्थानीय लोगों का कहना है कि “अगर आम आदमी पर ऐसा आरोप होता तो अब तक जेल हो चुकी होती। लेकिन जब अफसरों की बारी आई तो मामला फाइलों में दबा है।” कुछ विपक्षी पार्षदों ने कहा कि “सरकारी ढील और राजनीतिक संरक्षण की बू” इस पूरे प्रकरण में आ रही है।प्रशासन की सफाई….
नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “एफआईआर के लिए मुख्यालय स्तर से अनुमोदन मांगा गया है और जल्द ही विधिक राय के बाद आगे की कार्रवाई होगी।“निलंबन एक प्रशासकीय कदम है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया का पालन तब तक अधूरा है जब तक आपराधिक मुकदमा दर्ज न हो। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन सचमुच निष्पक्ष कार्रवाई करेगा, या यह मामला भी धीरे-धीरे फाइलों में दब जाएगा?