“अंजुमन गुलामाने मुस्तफा ﷺ सोसाइटी ने किया ‘लंगर-ए-आम’ का आयोजन, माहे मुहर्रम की आमद पर पहले दिन कढ़ी-चावल वितरित..

पंच👊नामा
रुड़की: इस्लामी नए साल की आमद और माहे मुहर्रम की पहली तारीख के मौके पर, अंजुमन गुलामाने मुस्तफा ﷺ सोसाइटी, रुड़की ने रामपुर रोड स्थित उमर एन्क्लेव कॉलोनी के बाहर एक शानदार लंगर-ए-आम का आयोजन किया। लंगर में आज के दिन विशेष रूप से कढ़ी-चावल वितरित किए गए, जिसे बड़ी संख्या में लोगों ने आदरपूर्वक ग्रहण किया।
दस दिन चलेगा सेवा और सब्र का सिलसिला….
संस्था के सेक्रेटरी कुंवर शाहिद ने जानकारी देते हुए बताया कि, “माहे मुहर्रम की पहली तारीख से लेकर 10 मुहर्रम (6 जुलाई 2025) तक हर दिन अलग-अलग पकवानों के साथ लंगर-ए-आम का आयोजन किया जाएगा।”संस्था के अध्यक्ष शाहिद नूर ने बताया कि रोज़-ए-आशूरा (10 मुहर्रम) के दिन एक भव्य लंगर का आयोजन किया जाएगा जिसमें भोजन के साथ-साथ ठंडे शर्बत की शबील भी लगाई जाएंगी ताकि गर्मी और प्यास से राहत मिल सके — यह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की प्यास की याद में किया जाता है।
🕊️ कर्बला: सब्र, शहादत और हक़ की मिसाल….
माहे मुहर्रम को इस्लामी इतिहास में सबसे ग़मगीन और अज़ीम महीना माना जाता है। यह महीना पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ के प्यारे नवासे सैय्यदना इमाम हुसैन अ.स. और उनके 72 साथियों की शहादत की याद में मनाया जाता है।संस्था के कोषाध्यक्ष आसिफ अली उर्फ़ हैदर ने बताया की 10 मुहर्रम 61 हिजरी को मैदाने कर्बला में 72 फिदाकारों की एक छोटी सी टुकड़ी ने यज़ीदी सवा लाख की फौज के सामने हक़, इंसाफ़ और दीन की सर बुलंदी के लिए जान कुर्बान कर दी। उस वक्त नहर-ए-फुरात को भी इमाम हुसैन और उनके अहले-बैत के लिए बंद कर दिया गया था, जिसके कारण बच्चे, औरतें, और बुज़ुर्ग भी तीन दिन की प्यास के बावजूद सब्र व इस्तिक़ामत का पहाड़ बने रहे।
🤲 इंसानियत के नाम पैग़ाम…..
अंजुमन के सेक्रेटरी साक़िब मालिक ने बताया की इस मुहिम का मक़सद सिर्फ खाना खिलाना नहीं, बल्कि इमाम हुसैन की उस कुर्बानी को ज़िंदा रखना है, जिसने यह सिखाया कि ज़ुल्म के सामने झुकना नहीं है और हक़ के लिए जान देना ही असल फ़तेह है।📌 इस आयोजन से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु….
10 दिन तक लगातार लंगर चलेगा
हर दिन अलग पकवान वितरित होंगे
6 जुलाई (10 मुहर्रम) को विशेष लंगर और शर्बत की शबील
समाज को आपसी मोहब्बत, इंसाफ़, और ईमानदारी का पैग़ाम🕯️अंत में…….
कर्बला सिर्फ एक जंग नहीं, यह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष की सबसे बड़ी मिसाल है। मुहर्रम का महीना हमें यह याद दिलाता है कि जब भी ज़ुल्म बढ़े, तब हुसैनी किरदार सामने आना चाहिए। “हर दौर में एक हुसैन चाहिए और हर यज़ीद को नकारा जाना चाहिए।”
”लेखक: कुँवर शाहिद….