
प्रवेज़ आलम!
पंच👊नामा-रुड़की: दिन भर ताजियों की जियारत, आशूरा का रोजा और नवाफिल पढ़ने का दौर। ये आलम था मंगलवार को ताजियों को विभिन्न कर्बलाओं में सुपुर्दे खाक करने से पहले का। हजरत इमाम हुसैन (रजि0) की याद में मंगलवार की शाम ग़मगीन माहौल में ताजिये सुपुर्दे खाक कर दिये गये हजारों अकीदतमंदों ने नम आंखों से ताजियों को विदा किया इससे पहले मर्सिया पढ़ी गई, जिसमें कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन और उनके जांनिसारों के साथ यजीदी फौजों द्वारा किये गये जुल्म की दास्तान सुनकर अकीदतमंद अपने आसु नहीं रोक पाए। लोगों ने विभिन्न स्थानों पर सबील, हलीम और खीर का वितरण किया।
मोहर्रम की 10 तारीख़ इतिहास का वो दिन है जब कर्बला में जंग के दौरान निहत्थे ईमाम हुसैन सहित 72 जांनिसारों को यज़ीद की फौज ने शहीद कर दिया था। इस जंग में भले ही यज़ीद ने जीत हासिल की थी लेकिन असल में जीत इस्लाम की हुई थी, किसी शायर ने क्या खूब कहा है,, *क़त्ल-ए-हुसैन अस्ल में मर्ग-ए-यज़ीद है इस्लाम ज़िंदा होता है हर कर्बला के बाद,,*
पिरान कलियर, रुड़की व आसपास के क्षेत्र में भी कई स्थानों पर ताजिए निकाले गए थे, दरगाह साबिर पाक, दरगाह अब्दाल साहब, दरगाह इमाम साहब, और अन्य गाँवो बढ़ेडी राजपुताना में भी ताजिये निकाले गए थे, जिन्हें एक साथ जुलूस के रूप में कर्बला में सुपुर्दे खाक किया गया है। मोर्रहम की दशवीं तारीख को अकीदतमंद मुस्लिमों ने रोजा रखा। वहीं क्षेत्र में जगह जगह लंगर खानी हुयी। इस दौरान शरबत, जलेबी, मीटा, चांवल, पुलाव, खीचड़ा वगैरहा आवाम के बीच लंगर किया गया और फातिया, अमन चैन की दुआए मांगी गयी। जुलूस के रूप में भारी तादाद में लोग स्थानीय कर्बला पहुँचे, तो सुरक्षा के लिहाज से पुलिस प्रशासन मुस्तैद रहा।