हरिद्वार

“सरकार और अखाड़ा परिषद पर बयानबाजी करने वाले संतों पर गिरी गाज, जूना अखाड़ा ने दिखाया बाहर का रास्ता..

अखाड़ा परिषद के समानांतर आश्रम परिषद बनाने का किया था ऐलान, कई और संतों पर जल्द कार्रवाई की चर्चाएं, गर्म हुई संतों की राजनीति..

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पंच👊नामा-ब्यूरो
हरिद्वार: सरकार और अखाड़ा परिषद के खिलाफ लगातार तीखी बयानबाजी करना जूना अखाड़े के दो बड़े संतों को महंगा पड़ गया। रविवार को आश्रम परिषद के गठन का ऐलान होते ही जूना अखाड़े ने सख्त रुख अपनाते हुए दोनों संतों को अखाड़े से बाहर कर दिया। इस कार्रवाई के बाद संत समाज में खलबली मच गई है और अखाड़ा राजनीति एक बार फिर उबाल पर आ गई है।

रविवार को हरिद्वार के एक आश्रम में नाराज साधु-संतों की बैठक हुई थी। बैठक में अखाड़ा परिषद की कार्यप्रणाली, चुनाव प्रक्रिया और सरकार से नजदीकियों को लेकर जमकर नाराज़गी जताई गई। इसी बैठक के दौरान अखाड़ा परिषद के समानांतर आश्रम परिषद बनाने का ऐलान किया गया। बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को लेकर की गई टिप्पणी को भी अखाड़ा नेतृत्व ने गंभीरता से लिया। जूना अखाड़े से बाहर किए गए संतों में भाजपा के टिकट पर हरिद्वार लोकसभा का चुनाव लड़ चुके स्वामी यतींद्रानंद गिरी और हिंदू रक्षा दल के अध्यक्ष स्वामी प्रबोधानंद गिरी शामिल हैं। दोनों ही संत जूना अखाड़े में महामंडलेश्वर पद पर रहे हैं और लंबे समय से अखाड़ा परिषद के चुनाव को लेकर सवाल उठा रहे थे।स्वामी यतींद्रानंद गिरी वर्ष 2009 में हरिद्वार से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और इससे पहले भी कई मुद्दों पर सरकार व अखाड़ा परिषद के विरुद्ध खुलकर बोलते रहे हैं। वहीं स्वामी प्रबोधानंद गिरी भी विभिन्न आंदोलनों और मंचों के माध्यम से अखाड़ा व्यवस्था में सुधार की मांग करते रहे हैं। जूना अखाड़े का कहना है कि अनुशासन, परंपरा और अखाड़ा मर्यादा सर्वोपरि है। अखाड़ा परिषद और सरकार को लेकर सार्वजनिक मंच से की जा रही बयानबाजी से संत समाज की छवि धूमिल हो रही थी, जिसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।सूत्रों के अनुसार, रविवार की बैठक में शामिल रहे कुछ और संत भी अखाड़ा नेतृत्व के निशाने पर हैं। उनके अखाड़े जल्द ही इन संतों को लेकर भी कोई कड़ा निर्णय ले सकते हैं। ऐसे संकेत मिलने से संत समाज में बेचैनी और बढ़ गई है। जूना अखाड़े की इस कार्रवाई को अन्य अखाड़े भी नजदीकी से देख रहे हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में अखाड़ा परिषद और आश्रम परिषद के बीच टकराव और तेज हो सकता है। संतों की राजनीति में यह विवाद अब खुलकर सामने आ गया है, जिससे धार्मिक गलियारों में सरगर्मी लगातार बढ़ रही है।

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