
पंच👊नामा-ब्यूरो
उत्तराखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए राज्य गठन के बाद भारतीय जनता पार्टी की ओर से सबसे लंबा मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा कर लिया है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के 3 वर्ष 357 दिन के कार्यकाल को पीछे छोड़ते हुए 3 वर्ष 358 दिन की सेवा पूरी की।इस ऐतिहासिक पड़ाव के साथ पुष्कर सिंह धामी अब उत्तराखंड के गठन के बाद दूसरे सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर चुके हैं। पहले स्थान पर कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी हैं, जिन्होंने 2002 से 2007 तक पांच वर्ष का पूर्ण कार्यकाल निर्विरोध पूरा किया था।
अचानक शुरू हुआ था धामी का नेतृत्व……
धामी का यह सफर जुलाई 2021 में शुरू हुआ, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया। पार्टी नेतृत्व ने पहले लोकसभा सांसद तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन अल्पकालिक कार्यकाल के बाद जिम्मेदारी पुष्कर सिंह धामी को सौंपी गई। तब से अब तक उन्होंने न केवल सरकार को स्थिरता दी, बल्कि एक निर्णायक नेतृत्व भी प्रस्तुत किया।निर्णायक फैसलों ने दिलाई पहचान…..
मुख्यमंत्री के रूप में श्री धामी ने कई महत्वपूर्ण और साहसिक फैसले लिए, जो उन्हें जनता और पार्टी के बीच लोकप्रिय बनाते चले गए। उनके कार्यकाल के प्रमुख निर्णयों में सख्त नकल विरोधी कानून, धर्मांतरण पर रोक लगाने वाला कानून, भूमि कानून में संशोधन और समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की दिशा में उठाए गए ठोस कदम शामिल हैं।जनता और संगठन दोनों में मजबूत पकड़…..
राज्य भाजपा के मीडिया प्रभारी श्री मानवीर चौहान ने कहा कि पुष्कर सिंह धामी का कार्यकाल जनकल्याणकारी निर्णयों और दूरदर्शी नेतृत्व का प्रतीक रहा है। उन्होंने कहा, “धामी जी ने उत्तराखंड की राजनीति को स्थायित्व और स्पष्ट दिशा दी है। उनके नेतृत्व में राज्य ने प्रशासनिक सुधारों और नीतिगत निर्णयों के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।”युवाओं और नवमतदाताओं में खास लोकप्रियता….
धामी न सिर्फ सबसे लंबे भाजपा कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री हैं, बल्कि युवाओं और प्रथम बार मतदाताओं में भी उनकी लोकप्रियता का ग्राफ लगातार ऊपर गया है। सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक उनकी सीधी और सुलझी हुई छवि ने उन्हें एक जननेता के रूप में स्थापित किया है।उत्तराखंड की राजनीतिक अस्थिरता के दौर में धामी की यह उपलब्धि न केवल एक रिकॉर्ड है, बल्कि भविष्य की राजनीति की नई दिशा भी संकेत करती है। अब सबकी निगाहें इस ओर हैं कि क्या वे पंडित नारायण दत्त तिवारी के रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ पाएंगे।